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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2794
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- प्राचीन इतिहास की संरचना में पुरातात्विक स्रोतों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।

अथवा
इतिहास के अध्ययन के लिए पुरातत्व के महत्व पर प्रकाश डालिए।
अथवा
'इतिहास पुनर्निर्माण के लिए पुरातात्विक साक्ष्य अति महत्वपूर्ण है।' समीक्षा कीजिए।
अथवा
इतिहास के स्रोत के रूप में पुरातत्व की उपयोगिता का परीक्षण कीजिए।
अथवा
इतिहासकारों के लिए पुरातत्व के महत्व को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

भारत के अतीत के इतिहास के अध्ययन में पुरातत्व अत्यंत सार्थक एवं सक्रिय भूमिका अदा करता है। पुरातात्विक साक्ष्य हमें दो रूपों में मिलते हैं - अलिखित तथा लिखित। अलिखित साक्ष्य नैसर्गिक जीवाश्मों, नरकंकाल तथा पशुओं एवं पादपों के जीवाश्मों एवं मानवकृत, पुरावशेषों तथा पुरानिधियों के रूप में मिलते हैं तथा लिखित साक्ष्य प्रायः प्रागैतिहासिक एवं आद्यैतिहासिक तथा लिखित साक्ष्य ऐतिहासिक काल के इतिहास एवं संस्कृति को प्रकाशित करते हैं। प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में कभी-कभी पुरातत्व हमारे लिये साहित्य से भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। प्रारम्भ में भारतीय साहित्य का संरक्षण श्रुति परम्परा के माध्यम से ही होता रहा। इसीलिए वैदिक ऋषियों ने उच्चारण पर विशेष बल दिया था। बाद में इन्हें लिपिबद्ध किया गया पर नश्वर उपकरणों पर लिखे जाने के कारण इनका अधिकांश भाग नष्ट होता रहा। इतना ही नहीं समय-समय पर लिपिकार तथा अनुवादक की भूल अथवा व्यक्तिगत रुचि के कारण उसमें जो परिवर्तन तथा परिवर्द्धन किये जाते रहे, उसके फलस्वरूप प्राचीन प्रकरण छूटते तथा नया जुड़ते रहे। कुछ लेखकों के पूर्वाग्रह होने के कारण उनकी रचनाओं में वास्तविक स्थिति का चित्रण नहीं किया गया है। जैसे यूनान से आने वले क्लासिकी लेखकों के पूर्वाग्रह होने के कारण उनकी यूनान से आने वाले क्लासिकी

रचनाओं में वास्तविक स्थिति का चित्रण नहीं किया गया है। जैसे लेखकों तथा चीन से आने वाले बौद्ध यात्रियों ने अपने-अपने दृष्टिकोणों से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को देखने की कोशिश की थी, परन्तु पुरातात्विक साक्ष्य इन दोषों से सर्वथा मुक्त है। पुरातात्विक स्रोतों को निम्नलिखित प्रकार से विभाजित कर सकते हैं-

1. अभिलेख - पुरातात्विक स्रोतों में इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का महत्वपूर्ण स्थान है। ये हमारे लिये दो प्रकार से सहायक है- प्रतिपादक के रूप में तथा ज्ञात तथ्यों के रूप में। प्रतिपादक साक्ष्य सम्बन्धित विषय के एकमात्र स्रोत हैं जैसे- अशोक के लेख, समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति, रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख, खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख आदि अनेक अभिलेखों के अभाव में इन शासकों की उपलब्धियों की जानकारी साहित्य से भी मिल जाती है। उदाहरणार्थ, महाभाष्यकार ने पुष्यमित्र द्वारा सम्पादित अश्वमेध यज्ञ का वर्णन किया, पर अयोध्या लेख से इसकी पुष्टि हो गयी कि उसने दो अश्वमेध यज्ञ किया था। इसी प्रकार साहित्यिक ग्रंथों (देवीचन्द्रगुप्तम्) में रामगुप्त तब तक समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी नहीं माना गया, जब तक उसकी मुद्राएँ तथा अभिलेख नहीं मिल गये। हर्षचरित के इस तथ्य का समर्थन हर्ष के मधुबन एवं बाँसखेड़ा अभिलेख से मिल जाता है कि शशांक ने राज्यवर्द्धन की हत्या छलपूर्वक की थी। हर्ष एवं पुलकेशिन द्वितीय मध्य युद्ध के विरुद्ध हर्ष की असफलता का वर्णन ह्वेनसांग ने किया। इसकी सम्पुष्टि पुलकेशिन द्वितीय के एहोल अभिलेख से हुई। पहले यह विश्वास किया जाता था कि गौतम बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु में हुआ था, क्योंकि शाक्यों की राजधानी यही थी, पर अशोक के रूम्मिनदेई लेख से स्पष्ट पता चल गया कि वे लुम्बिनी में पैदा हुए थे। इस प्रकार अभिलेखों से प्रतिपादित ओर समर्थक रूप में भारतीयों के कई पक्षों का चित्र उपस्थित होता है। इन अभिलेखों से भारत के भूगोल की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। विभिन्न प्रकार के अभिलेखों का अध्ययन निम्नलिखित है

शिलालेख - शिलाओं की उपलब्धता के कारण अधिकांश प्राचीन भारतीय लेख इसी पर उत्कीर्ण किये गये थे। इसके लिये चट्टानों को साफ किया जाता था और कभी-कभी उन चटटानों को अलग दूर स्थानों पर ले जाकर उस पर लेख उत्कीर्ण किये जाते थे। ऐसे लेखों में अशोक के चतुर्दश शिला-प्रज्ञापन, पुष्यमित्र शुंग का अयोध्या लेख, शक कुषाणों के शिलालेख, रुद्रदामन की जूनागढ़ प्रशस्ति, यशोधर्मा की मन्दसोर प्रशस्ति, ईशान वर्मा का एरण लेख, आदित्य सेन का अपसढ़ लेख प्रमुख हैं।

स्तम्भ लेख - भारत में अत्यन्त प्राचीन काल से ही स्तम्भों का निर्माण किया जाता रहा। सैन्धव सभ्यता के विभिन्न स्थलों के उत्खनन से स्तम्भों के अवशेष मिले हैं। ऐतिहासिक काल में अभिलेख लिखवाने के लिए स्तम्भों का प्रयोग किया जाने लगा। लेखांकन के लिए स्तम्भों का सर्वप्रथम प्रयोग मौर्य सम्राट अशोक ने किया तथा अपनी राजाज्ञाओं को इन्हीं स्तम्भों पर उत्कीर्ण कराया। इन्हें सात स्तम्भ शासनादेश के नाम से प्रसिद्धि मिली। मौर्योत्तर काल के बाद प्रमुख स्तम्भ लेखों में यूनानी शासक हेलियोडोरस का विदिशा स्तम्भ लेखए समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशक्ति, स्कन्दगुप्त का भितरी स्तम्भ लेख, बुधगुप्त एवं भानुगुप्त के स्तम्भ लेख, यशोधर्मा की मन्दसौर प्रशस्ति आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। लौह स्तम्भों में मेहरौली लौह स्तम्भ लेख अत्यनत महत्वपूर्ण है।

स्तूप लेख -  ह्वेनसांग के अनुसार अशोक ने बुद्ध के धातु अंशों पर अनेक स्तूपों का निर्माण करवाया था। किसी पात्र में धातु अंशों को रखकर उसके ऊपर एक अर्द्धवृत्ताकार निर्माण किया जाता था। इसके चारों ओर वेष्टनी बनायी जाती थी, जिसमें द्वार या तोरण बने होते थे। इसी वेष्टनी अथवा तोरण या सूची पर लेख उत्कीर्ण किये जाते थे।

अवशेष पात्र लेख - कभी-कभी धातु अंशों को किसी सोने या अन्य किसी पत्थरों के बर्तनों में रखकर उसे एक प्रस्तर की मंजूषा में रखते थे। इस मंजूषा के ढक्कन पर भी कभी-कभी लेख उत्कीर्ण किये जाते थे। इस प्रकार के लेखों में पिपरहवा का पात्र लेख अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह प्राकृत भाषा तथा ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण है। इसमें भगवान बुद्ध के शरीर (अवशेष) के पात्र की स्थापना का उल्लेख है।

गुहालेख - प्राचीन कालीन शासकों ने अभिलेख लिखवाने के लिये गुहाओं का भी उपयोग किया। इनका उपयोग बौद्ध भिक्षुओं के निवास के लिये किया जाता था। इनका निर्माण पर्वतों को काटकार दानशील तथा उदार राजाओं एवं व्यक्तियों द्वारा विभिन्न सम्प्रदायों के भिक्षुओं तथा साधुओं की आजीविका आदि के लिए किया जाता था। ऐसे लेखों में हाथीगुम्फा अभिलेख, नासिक गुहालेख इत्यादि प्रमुख हैं।

प्रतिमा लेख - प्राचीन भारत में मूर्तियों के आधार शीर्ष, अधोभाग अथवा पृष्ठभाग को भी लेख लिखवाने के लिये प्रयुक्त किया गया। यह कार्य उस समय से प्रारम्भ हुआ जबसे भारत में वैदिक, बौद्ध तथा जैन सम्प्रदाय के अनुयायियों ने मूर्तियों का निर्माण शुरू किया। ऐसी प्रतिमा लेखों में मथुरा से प्राप्त अनेक जैन और बौद्ध मूर्तियाँ मिली हैं। कुछ दिन पूर्व विदिशा (बेसनगर) से तीन किमी. दूर दुर्जनपुर नामक गाँव से तीन जैन प्रतिमाएँ मिली हैं।

आयागपट्ट लेख - प्राचीन काल में आयागपट्टों पर भी लेख उत्कीर्ण किये जाते थे। आयागपट्ट जैन कला से सम्बन्धित एक चतुष्कोणीय प्रस्तर है, जिस पर तीर्थकर की प्रतिमा तथा अष्टमांगलिक वस्तुएँ अंकित की गयी हैं। इसके साथ ही बौद्ध सम्प्रदाय से सम्बन्धित आयागपट्ट अहिक्षत्र तथा कौशाम्बी से भी प्राप्त हुए हैं।

ताम्रपट्ट लेख - प्राचीन काल में ताम्रपट्टों पर भी अभिलेख लिखवाने की परम्परा थी। इस प्रकार के लेख प्रमुख रूप से दान-पत्र हैं। ऐसे लेखों में शासकों, व्यक्ति विशेष अथवा संस्थाओं द्वारा दिये गये दानों का विवरण मिलता है। गुप्त युग में आकर यह प्रथा अत्यधिक प्रचलित हो गयी। ऐसे ताम्रलेखों में समुद्रगुप्त का नालन्दा ताम्रलेख, कुमारगुप्त का धनैदह ताम्रलेख, कुमारगुप्त प्रथम का दामोदरपुर ताम्रलेख, धर्मादित्य के फरीदपुर ताम्रलेख, विन्ध्यशक्ति का वासिम दान-पत्र, राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष का संजन ताम्रलेख, चालुक्य नरेश विक्रमादित्य षष्ठ का निलगुण्ड ताम्रलेख, चोल राजराज प्रथम का लीडन ताम्रलेख उल्लेखनीय हैं।

2. मुद्राएँ - प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों में अभिलेखों से भी उपादेय मुद्राएँ हैं। भारत के प्राचीनतम सिक्के जो अब तक प्राप्त हुए हैं, उनमें पंचमार्क मुद्राएँ (आहत सिक्के) प्रमुख हैं। इन आहत मुद्राओं को राजा की आज्ञा से श्रेणियाँ स्वर्णकार तैयार करते थे। इन पर उत्कीर्ण चिन्हों का यह अर्थ माना जाता था कि ये इसके प्रर्वतक संस्था के चिन्ह हैं। मौर्यों के समय शासकों ने मुद्रा प्रणाली अपने हाथ में ले ली। अब लक्षणाध्यक्ष के निर्देशन में सिक्के टकसाल में ढाले जाने लगे। लेकिन अभी भी जनता को सिक्के ढलवाने की अनुमति थी। मौर्यकालीन मुद्राओं पर कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है। मौर्यों के पतन के बाद प्रजातन्त्रों को पुनः आगे बढने का अवसर प्राप्त हुआ। मालव, आर्जुनायन यौधेय कुणिन्द आदि गणराज्यों ने अपने नाम के सिक्के चलवाये। इस प्रकार ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी तक में विविध पक्षों की जानकारी करने में इन सिक्कों से बड़ी सहायता मिलती है। भारतीय यूनानी शासकों के इतिहास निर्माण के तो ये एकमात्र साधन है। डियोडोट्स, यूथी डेमस, दिमित, अपोलदतस, मिनाण्डर आदि हिन्द यवन शासकों की जानकारी इन सिक्कों से ज्ञात होती है। शकों के उत्तराधिकार क्रम की जानकारी तथा रुद्रदामन के महाक्षत्रप बनने तथा चन्द्रगुप्त द्वितीय की शक विजय तथा उसकी नकल पर चाँदी के सिक्कों का प्रचलन आदि की इन्हीं सिक्कों से जानकारी प्राप्त होती है। डॉ. डी. सी. सरकार का मन्तव्य है कि "इतिहास के स्रोत के रूप में मुद्राओं का महत्व उन देशों में उतना नहीं है, जहाँ निर्यात लिखित इतिहास प्रारम्भिक कालों का उपलब्ध है, किन्तु भारतीय इतिहास के निर्माण में इनका उल्लेखनीय महत्व है, क्योंकि इस उपमहाद्वीप ने अपने प्रारम्भिक कालों में एक भी हेरोडोट्स या थ्यूसीडिडेस और लिखी या टेमियस जैसा इतिहास नहीं पैदा किया।'

मुद्राओं से हमें अन्य पक्षों की भी जानकारी प्राप्त होती है। किसी वंश में कितने शासक हुए, इसका पता हमें सिक्कों से आसानी से ज्ञात हो जाता है। इसके साथ ही सिक्कों से हमें धार्मिक मतों की भी जानकारी प्राप्त हो जाती है। उत्तरी-पश्चिमी तथा दक्षिणी-पश्चिमी भारत में शैव मत के प्रचार-प्रसार का समर्थन सिक्कों पर अंकित शिव-प्रतीकों, नन्दी तथा त्रिशूल से मिल जाता है। यूनानी राजाओं के सिक्कों पर वैसे तो देवी-देवताओं की मूर्तियाँ मिलती हैं, पर कभी-कभी भारतीय देवताओं के प्रतीक भी मिल जाते हैं। कुषाण शासक विमकेडफिसेस के सिक्कों पर नन्दी के साथ-साथ शिव की आकृति भी मिल जाती है। इस पर खरोष्ठी में महरजस राजाधिरजस सर्वलोक ईश्वरस विमकेडफिसेस लेख भी है। गुप्त राजाओं के सिक्कों पर गरुड़ध्वज की आकृति तथा परमभागवत उपाधि से पता चलता है कि वे वैष्णव मतावलम्बी थे। हर्ष शैव मत का अनुयायी था इसकी पुष्टि अभी हाल में फर्रुखाबाद से प्राप्त हर्ष की एकमात्र स्वर्ण मुद्रा से हो जाती है जिसके पृष्ठ भाग पर आरूढ़ शिव-पार्वती की आकृति मिलती है। राजनीतिक तथा धार्मिक पक्षों के साथ-साथ इन मुद्राओं से तत्कालीन जनजीवन के विविध पक्षों की भी जानकारी प्राप्त हो जाती है। समुद्रगुप्त तथा कुमारगुप्त के अश्वमेध सिक्कों से इन शासकों के यज्ञानुष्ठान का पता चलता है। कुमारदेवी प्रकार के सिक्कों से गुप्त लिच्छवि सम्बन्धों की जानकारी होती है। सिक्कों पर कभी-कभी शासक को वीणा बजाते हुए तथा सिंह का शिकार करते हुए दिखाया गया है। दक्षिण भारत के सातवाहन राजाओं के सिक्कों पर नाव का चिन्ह मिला है। इससे पता चलता है कि आन्ध्र शासकों ने समुद्र पर विजय प्राप्त कर इन सिक्कों को प्रचलित किया था। सिक्कों पर अंकित लेख एवं चित्र तत्कालीन साहित्य, भाषा तथा कलात्मक प्रगति का परिचय कराते हैं।

3. स्मारक - स्मारकों से भी प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है। प्राचीन भारतीयों ने यदि एक ओर अपनी तथा भाषा के माध्यम से अपने विचारों को व्यक्त किया तो दूसरी ओर अपनी छेनी, कन्नी तथा तूलिका से मूक कलाकृतियों तथा स्मारकों की रचना कर भारतीय आध्यात्मिक एवं बौद्धिक ज्ञान को मूर्त रूप देने का प्रयास किया। प्राचीन भवन, मन्दिर, विहार, गुफाएँ, स्तम्भ, मूर्तियाँ, शिल्प आदि भारतीय संस्कृति के दर्पण हैं। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के अवशेष तत्कालीन प्रस्तर कला की उन्नति के परिचायक है। गुप्तयुगीन मन्दिर तथा गुप्तोत्तर युग में आर्य द्रविड़ और बेसर शैली के मन्दिर, जावा के बोरोबुदुर स्तूप, गुफाएँ, गुहामन्दिर आदि प्रमुख स्मारकों से इतिहास की व्यापक जानकारी प्राप्त होती है।

4. मृद्भाण्ड - प्राचीन भारतीय इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों में मृद्भाण्डों से भी अत्यधिक जानकारी प्राप्त होती है। ये पुरातत्व की प्रयोगशाला या वर्णमाला के नाम से जाने जाते हैं। इन मृद्भाण्डों में चित्रित धूसर भाण्ड ( Painted gray ware), कृष्ण-लोहित मृद्भाण्ड (Black and red ware), गेहुंए रंग के मृद्भाण्ड (Ochre coloured pottery) आदि विभिन्न सांस्कृतिक स्तर के ज्ञान में हमारी सहायता करते हैं। मृद्भाण्ड इतिहासकारों को किसी अन्य स्रोत की भाँति युग विशेष एवं स्थल विशेष के अतीत के प्रायः सभी पक्षों सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालता है।

प्रो. बी. बी. लाल ने कहा है कि-

"The pottery, like other source material know to historians, throws light on almost every aspects of the part, social, cultural, religious economic, political and what not. In fact I might go even a step further and declare that in recent years pottery has helped us even in solving riddles which other sources just could not.

प्रो. बी. बी. लाल ने यह भी कहा है कि - "मृद्भाण्ड अत्यंत महत्वपूर्ण कुन्जी है जिसके द्वारा भूतकाल के अनेक रहस्यों को खोला जा सकता है जो अब तक अज्ञात रहे हैं।'
आद्यैतिहासिक रामायण तथा महाभारतकालीन संस्कृतियों की पहचान इन मृद्भाण्डों के आधार पर की जा रही है। विगत कुछ वर्षों से प्रो. ब्रजवासी लाल शृंगवेरपुर, भरद्वाज आश्रम, अयोध्या आदि स्थलों का उत्खनन कर रामायणकालीन संस्कृति को पहचानने के प्रयास में संलग्न हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पुरातत्व क्या है? इसकी विषय-वस्तु का निरूपण कीजिए।
  2. प्रश्न- पुरातत्व का मानविकी तथा अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के स्वरूप या प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  4. प्रश्न- 'पुरातत्व के अभाव में इतिहास अपंग है। इस कथन को समझाइए।
  5. प्रश्न- इतिहास का पुरातत्व शस्त्र के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- भारत में पुरातत्व पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  7. प्रश्न- पुरातत्व सामग्री के क्षेत्रों का विश्लेषण अध्ययन कीजिये।
  8. प्रश्न- भारत के पुरातत्व के ह्रास होने के क्या कारण हैं?
  9. प्रश्न- प्राचीन इतिहास की संरचना में पुरातात्विक स्रोतों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में पुरातत्व का महत्व बताइए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  12. प्रश्न- स्तम्भ लेख के विषय में आप क्या जानते हैं?
  13. प्रश्न- स्मारकों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्रात होती है?
  14. प्रश्न- पुरातत्व के उद्देश्यों से अवगत कराइये।
  15. प्रश्न- पुरातत्व के विकास के विषय में बताइये।
  16. प्रश्न- पुरातात्विक विज्ञान के विषय में बताइये।
  17. प्रश्न- ऑगस्टस पिट, विलियम फ्लिंडर्स पेट्री व सर मोर्टिमर व्हीलर के विषय में बताइये।
  18. प्रश्न- उत्खनन के विभिन्न सिद्धान्तों तथा प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- पुरातत्व में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज उत्खननों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  20. प्रश्न- डेटिंग मुख्य रूप से उत्खनन के बाद की जाती है, क्यों। कारणों का उल्लेख कीजिए।
  21. प्रश्न- डेटिंग (Dating) क्या है? विस्तृत रूप से बताइये।
  22. प्रश्न- कार्बन-14 की सीमाओं को बताइये।
  23. प्रश्न- उत्खनन व विश्लेषण (पुरातत्व के अंग) के विषय में बताइये।
  24. प्रश्न- रिमोट सेंसिंग, Lidar लेजर अल्टीमीटर के विषय में बताइये।
  25. प्रश्न- लम्बवत् और क्षैतिज उत्खनन में पारस्परिक सम्बन्धों को निरूपित कीजिए।
  26. प्रश्न- क्षैतिज उत्खनन के लाभों एवं हानियों पर प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति के विकास का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- भारत की मध्यपाषाणिक संस्कृति पर एक वृहद लेख लिखिए।
  31. प्रश्न- मध्यपाषाण काल की संस्कृति का महत्व पूर्ववर्ती संस्कृतियों से अधिक है? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  32. प्रश्न- भारत में नवपाषाण कालीन संस्कृति के विस्तार का वर्णन कीजिये।
  33. प्रश्न- भारतीय पाषाणिक संस्कृति को कितने कालों में विभाजित किया गया है?
  34. प्रश्न- पुरापाषाण काल पर एक लघु लेख लिखिए।
  35. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन मृद्भाण्डों पर टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- पूर्व पाषाण काल के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  37. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन शवाशेष पद्धति पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- मध्यपाषाण काल से आप क्या समझते हैं?
  39. प्रश्न- मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।।
  40. प्रश्न- मध्यपाषाणकालीन संस्कृति का विस्तार या प्रसार क्षेत्र स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र के मध्यपाषाणिक उपकरणों पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- गंगा घाटी की मध्यपाषाण कालीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- नवपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिये।
  44. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- दक्षिण भारत की नवपाषाण कालीन संस्कृति के विषय में बताइए।
  46. प्रश्न- मध्य गंगा घाटी की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं? भारत में इसके विस्तार का उल्लेख कीजिए।
  48. प्रश्न- जोर्वे-ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- आहार संस्कृति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- जोर्वे संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  54. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के औजार क्या थे?
  55. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  56. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  62. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  63. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- लौह उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुरैतिहासिक व ऐतिहासिक काल के विचारों से अवगत कराइये?
  67. प्रश्न- लोहे की उत्पत्ति (भारत में) के विषय में विभिन्न चर्चाओं से अवगत कराइये।
  68. प्रश्न- "ताम्र की अपेक्षा, लोहे की महत्ता उसकी कठोरता न होकर उसकी प्रचुरता में है" कथन को समझाइये।
  69. प्रश्न- महापाषाण संस्कृति के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- लौह युग की भारत में प्राचीनता से अवगत कराइये।
  71. प्रश्न- बलूचिस्तान में लौह की उत्पत्ति से सम्बन्धित मतों से अवगत कराइये?
  72. प्रश्न- भारत में लौह-प्रयोक्ता संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन मृद्भाण्ड परम्परा से आप क्या समझते हैं? गैरिक मृद्भाण्ड (OCP) संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  74. प्रश्न- चित्रित धूसर मृद्भाण्ड (PGW) के विषय में विस्तार से समझाइए।
  75. प्रश्न- उत्तरी काले चमकदार मृद्भाण्ड (NBPW) के विषय में संक्षेप में बताइए।
  76. प्रश्न- एन. बी. पी. मृद्भाण्ड संस्कृति का कालानुक्रम बताइए।
  77. प्रश्न- मालवा की मृद्भाण्ड परम्परा के विषय में बताइए।
  78. प्रश्न- पी. जी. डब्ल्यू. मृद्भाण्ड के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  79. प्रश्न- प्राचीन भारत में प्रयुक्त लिपियों के प्रकार तथा नाम बताइए।
  80. प्रश्न- मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि पर प्रकाश डालिए।
  81. प्रश्न- प्राचीन भारत की प्रमुख खरोष्ठी तथा ब्राह्मी लिपियों पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- अक्षरों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- अशोक के अभिलेख की लिपि बताइए।
  84. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में अभिलेखों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  85. प्रश्न- अभिलेख किसे कहते हैं? और प्रालेख से किस प्रकार भिन्न हैं?
  86. प्रश्न- प्राचीन भारतीय अभिलेखों से सामाजिक जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है?
  87. प्रश्न- अशोक के स्तम्भ लेखों के विषय में बताइये।
  88. प्रश्न- अशोक के रूमेन्देई स्तम्भ लेख का सार बताइए।
  89. प्रश्न- अभिलेख के प्रकार बताइए।
  90. प्रश्न- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के विषय में बताइए।
  91. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
  92. प्रश्न- मुद्रा बनाने की रीतियों का उल्लेख करते हुए उनकी वैज्ञानिकता को सिद्ध कीजिए।
  93. प्रश्न- भारत में मुद्रा की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  94. प्रश्न- प्राचीन भारत में मुद्रा निर्माण की साँचा विधि का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- मुद्रा निर्माण की ठप्पा विधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्कों) की मुख्य विशेषताओं एवं तिथिक्रम का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- मौर्यकालीन सिक्कों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कीजिए।
  98. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्के) से आप क्या समझते हैं?
  99. प्रश्न- आहत सिक्कों के प्रकार बताइये।
  100. प्रश्न- पंचमार्क सिक्कों का महत्व बताइए।
  101. प्रश्न- कुषाणकालीन सिक्कों के इतिहास का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- भारतीय यूनानी सिक्कों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  103. प्रश्न- कुषाण कालीन सिक्कों के उद्भव एवं प्राचीनता को संक्षेप में बताइए।
  104. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- गुप्तकालीन ताम्र सिक्कों पर टिप्पणी लिखिए।
  106. प्रश्न- उत्तर गुप्तकालीन मुद्रा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  107. प्रश्न- समुद्रगुप्त के स्वर्ण सिक्कों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  108. प्रश्न- गुप्त सिक्कों की बनावट पर टिप्पणी लिखिए।
  109. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइए।
  110. प्रश्न- इतिहास के अध्ययन हेतु अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सिक्कों के महत्व की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- प्राचीन सिक्कों से शासकों की धार्मिक अभिरुचियों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है?
  113. प्रश्न- हड़प्पा की मुद्राओं के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  114. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  115. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व बताइए।

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